इंदिरा गांधी द्वारा पार्टी से निकाले जाने के बाद 02 जनवरी को बनाई थी अपनी पार्टी ।

मीडिया ग्रुप, 02 जनवरी, 2023

जब सारी दुनिया सो रही होगी तो भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा। 1947 में 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि में नेहरू ने आजादी के सपनों की खुश्बों इन्ही सपनों के साथ बिखेरी थी। शायद उस वक्त देश भी नेहरू के उन सपनों में भावी हिन्दुस्तान की तस्वीर देख रहा था। कांग्रेस ने गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हिन्दुस्तान को देखा है।

आजादी की हवा में हिन्दुस्तान को सांस लेते देखा है। संविधान को बनते देखा है। संसद को बैठते देखा। जम्हूरियत को मजबूत होते देखा। खुद को टूटते हुए देखा है। इतिहास 1885 के वक्त का जब मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज में कांग्रेस की बुनियाद पड़ी। कांग्रेस में समय समय पर किस तरह बगावत भड़की या मतभेदों के चलते पार्टी में खेमेबाज़ी हुई और नतीजा ये हुआ कि पार्टी किसी न किसी तरह टूटी।

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन करीब दो साल के भीतर ही ताशकंद में ऐतिहासिक समझौते के बाद उनकी भी मृत्यु हुई। तब पार्टी में शीर्ष नेतृत्व को लेकर सवाल खड़ा हुआ। प्रधानमंत्री पद के लिए शास्त्री के बरक्स उम्मीदवार रह चुके मोरारजी देसाई का नाम सबसे आगे था। लेकिन, उस समय पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी का नाम आगे किया और नेहरू परिवार को तवज्जो दिए जाने की परंपरा शुरू हुई।

इंदिरा को पीएम बनाए जाने के लिए समर्थन जुटाने में के कामराज की प्रमुख भूमिका रही और कांग्रेस के भीतर इंदिरा 180 वोटों से देसाई से जीत गई।1967 के पांचवें आमचुनाव में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली। 520 सीटें में उसे 283 सीटें प्राप्त हुई। उस साल के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वरिष्ठ नेता और इंदिरा गांधी के मतभेद खुलकर सामने आए। पीएम होने के बावजूद इंदिरा को पार्टी से निकाला गया।

तत्कालीन कांग्रेस पार्टी प्रमुख निजालिंगप्पा ने इंदिरा गांधी को पार्टी से ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर निर्वासित कर दिया। फिर, कांग्रेस अलग और इंदिरा के कांग्रेस पार्टी अलग। मूल कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी बनाई।

2 जनवरी 1978 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को फिर तोड़ते हुए नई पार्टी बनाई। इसे कांग्रेस (आई) का नाम दिया गया। उस वक्त गाय बछड़े की जोड़ी को इंदिरा गांधी और संजय गांधी के साथ जोड़कर सियासी गलियारों में मजाक भी उड़ाया जाता था। बाद में कांग्रेस पार्टी ने अपना चुनाव चिन्ह बदलने का निर्णय लिया। इस बार इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग से नए चुनाव चिन्ह की मांग की।

जिस दौर में कांग्रेस अपने चुनाव चिन्ह को बदलने पर मंथन कर रही थे उस वक्त कांग्रेस के इंचार्ज बूटा सिंह थे। उस वक्त हाथ, हाथी और साइकिल चुनाव चिन्ह में से बूटा सिंह ने हाथ के निशान को चुना। इससे जुड़ा एक दिलचस्प वाक्या है जब फोन पर बूटा सिंह इंदिरा गांधी को हाथ के निशान के चयन की बात बताई तो इंदिरा ने हाथी समझा, गाय-बछड़े के निशान के बाद इंदिरा किसी पशु को पार्टी के चुनाव चिन्ह बनाने के मूड में नहीं थी। इंदिरा गांधी ने कहा कि हाथी नहीं हाथ। बूटा सिंह ने तपाक से बोला मैं भी तो यही बोल रहा हूं पंजा। कुछ इस तरह कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बना पंजा।