महंगाई डायन (पार्ट-1) : इतिहास गवाह है कि असाधारण रूप से जब भी महंगाई बढ़ी, राजनीतिक उथल-पुथल मची। 

मीडिया ग्रुप, 01 नवंबर, 2021
लेखक- गुरबाज सिंह, विधि संपादक, मीडिया ग्रुप

महंगाई एक ज्वलंत मुद्दा है। भले ही आज यह एक शक्तिशाली राजनीतिक मुद्दा न हो, लेकिन लगातार बढ़ती महंगाई आने वाले समय में असंतोष पैदा कर सकती है। सरसों तेल, आलू-प्याज, टमाटर, सब्जियां, रसोई गैस और पेट्रोल डीजल की बढ़ी कीमतें आम आदमी के जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं।

हर चीज की कीमत दोगुनी होने से जनजीवन त्रस्त है। कोरोना काल के बाद सभी क्षेत्रों में बढ़ती महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है। इतिहास गवाह है कि असाधारण रूप से महंगाई जब भी बढ़ी है।राजनीतिक उथल-पुथल मची है।

2019 में पिछले लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में महंगाई का बहुत अधिक उल्लेख नहीं था। यह शब्द विपक्षी दल, कांग्रेस के विजन दस्तावेजों में भी गायब था। इसकी वजह यह हो सकती है कि 2014 और 2019 के बीच मंहगाई में कमी आई थी। हालांकि 2014 में चुनाव में यूपीए सरकार के अंतिम सालों में वस्तुओं की बढ़ी कीमतों को भाजपा ने मुद्दा बनाया और इसे अपने विजन दस्तावेज में सबसे प्रमुखता से रखा था।

कांग्रेस ने बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा और खाद्य पदार्थ की बढ़ती कीमतों के विरोध में जनजागरण अभियान शुरू करने का एलान किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने बीते सप्ताह बताया कि यह अभियान 14 से 29 नवंबर तक चलाया जाएगा। दूसरी तरफ सपा ने भी रसोई पर पड़ी मार को मुद्दा बनाना तय किया है। इसका काम सपा की महिला बिग्रेड को सौंपा गया है।

भाजपा को छोड़कर बाकी सभी दलों के लिए महंगाई एक बड़ा मुद्दा है। हर राजनीतिक दल महंगाई पर बात कर रहे हैं। जिस तरह से पेट्रोलियम पदार्थ, डीजल, रसोई गैस, कर्मशियल सिलेंडर की कीमतें बढ़ रही है, यह हमारी सरकार की आर्थिक व्यवस्था के कुप्रबंधन का नतीजा है जिस पर वे बात नहीं करना चाहते हैं। सिर्फ भाजपा और एनडीए गठबंधन को महंगाई पर कोई चिंता नहीं हो रही है।