गुरु हरगोविंद साहिब ने केसर के छींटे मारकर पीपल साहिब को कर दिया था हरा

मीडिया ग्रुप, 15 नवंबर, 2023

नानकमत्ता। देवों की भूमि में जहां चारधाम अपनी विशेष पहचान रखते हैं तो वहीं सिखों का ऐतिहासिक धाम गुरुद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब भी बेहद ख्यातिलब्ध है।

गुरुद्वारा परिसर में छह सौ साल पुराने श्री पंजा साहिब (पीपल के पेड़) की अपनी मान्यता है। श्री गुरुनानक देव ने तीसरी उदासी (धार्मिक यात्रा) के दौरान पहुंच यहां कदम रखा तो पीपल साहिब को अपना वासस्थल बनाया था।

उस दौरान गोरखनाथ के शिष्यों ने उनके वासस्थल को उजाड़ने के लिए पीपल को ही आकाश में उड़ाना चाहा लेकिन गुरुनानक देव जी ने जमीन से उखड़े पेड़ को अपने पंजे से रोक दिया।

इसकी जड़ें आज भी जमीन के ऊपर दिखाई देतीं हैं। गुरुद्वारा साहिब के जानकार बताते हैं कि सिखों के प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी देवभूमि उत्तराखंड में अपनी तीसरी उदासी (धार्मिक यात्रा) पर अपने शिष्य बाला एवं मर्दाना के साथ करीब 1508 ईस्वी में नानकमत्ता साहिब पहुंचे थे।

उस दौरान यहां गोरखनाथ के घमंडी शिष्य अपने मठ बनाकर रहते थे। गुरुनानक देव जी ने श्री पंजा साहिब (पीपल का पेड़) के नीचे वास किया था। योगी गुरुनानक देव की प्रसिद्धि से चिढ़ने लगे।

योगियों ने अपने तपोबल से पीपल साहिब को आकाश में उड़ाने का असफल प्रयास किया लेकिन उड़ते पीपल को गुरुनानक देव ने हाथ का पंजा लगाकर रोक दिया। जिसे आज पवित्र पंजा साहिब कहा जाता है।

कालांतर में योगियों ने शक्ति का दुरुपयोग कर गुरुनानक देव के वासस्थल पर लगे पीपल को जला दिया। उस समय यहां बाबा अलमस्त जी गुरुद्वारा साहिब की सेवा में थे।

यह देख बाबा अलमस्त जी ने अरदास की तो 17वीं सदी में छठे गुरु पातशाह गुरु हरगोविंद साहिब जी धूमखेड़ा गांव पहुंचे। यहां उन्होंने अपने सैनिकों के साथ रुककर उनके घोड़ों को यहीं बांध दिया।

इसके बाद पैदल सैनिकों के साथ नानकमत्ता साहिब पहुंचे और योगियों की ओर से जलाए गए पीपल को पानी में केसर मिलाकर उसके छींटे मारकर हरा कर दिया।

आज भी पतझड़ के बाद जब पीपल साहिब पर बहार आती है तो जलाए गए पीपल के हिस्से से केसरिया रंग के पत्ते अंकुरित होते हैं। जिन पर केसर के छींटों के निशान दिखाई देते हैं। यह दृश्य हर साल फरवरी-मार्च में दिखता है।

वहीं, धूमखेड़ा में जिस स्थान पर छठे गुरु पातशाह श्री हरगोविंद साहिब अपने सैनिकों के साथ रुके थे, उसे आज गुरुद्वारा छेवी पातशाही किल्ला साहिब के नाम से जाना जाता है। यहां भी सिख संगत गुरुद्वारा साहिब दर्शन करने पहुंचती है।