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लेखक/सोर्स : बादल गंगवार
भारतीय संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों के तहत हर नागरिक से अपेक्षा की जाती है कि वह पर्यावरण को सुरक्षित रखने में योगदान देगा। जीने के बेहतर मानक और प्रदूषणरहित वातावरण संविधान के भीतर अंतर्निहित हैं।
भारत का स्वरूप एक लोक-कल्याणकारी राज्य का है और स्वस्थ पर्यावरण भी कल्याणकारी राज्य का ही एक तत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास के लिये सबसे ज़रूरी मौलिक अधिकारों की गारंटी भारत का संविधान भाग-3 के तहत देता है।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 के अनुसार पर्यावरण में जल, हवा और जमीन के साथ मानव, अन्य जीवित चीजें, पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीव-जंतु और संपत्ति आदि शामिल हैं।
यह कानून कहता है कि पर्यावरण के अधिकार के बिना व्यक्ति का विकास संभव नहीं है। भारत में पर्यावरण कानून का इतिहास लगभग 125 वर्ष पुराना है। इस संबंध में प्रथम कानून 1894 में पारित हुआ था और इसमें वायु प्रदूषण नियंत्रणकारी प्रावधान थे।
प्राकृतिक पर्यावरण: अनुच्छेद 51A(g) कहता है कि जंगल, तालाब, नदियां, वन्यजीव सहित सभी तरह की प्राकृतिक पर्यावरण संबंधित चीजों की रक्षा करना व उनको बढ़ावा देना हर भारतीय का कर्त्तव्य होगा।
साथ ही प्रत्येक नागरिक को सभी सजीवों के प्रति करुणा रखनी होगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य: संविधान का अनुच्छेद 47 के अनुसार लोगों के जीवन स्तर को सुधारना, उन्हें भरपूर पोषण उपलब्ध कराना और सार्वजनिक स्वास्थ्य की वृद्धि के लिये काम करना राज्य के प्राथमिक कर्त्तव्यों में शामिल हैं।
सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के तहत पर्यावरण संरक्षण और उसमें सुधार भी शामिल हैं, क्योंकि इसके बिना सार्वजनिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता।
कृषि एवं जीव-जगत: अनुच्छेद 48 कृषि एवं जीव-जगत के संरक्षण की बात करता है। यह अनुच्छेद राज्यों को निर्देश देता है कि वे कृषि व जीवों से जुड़े कारोबार को आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से संगठित करने के लिये जरूरी कदम उठाएँ।
विशेष तौर पर राज्यों को जीव-जंतुओं की प्रजातियों को संरक्षित करना चाहिये और गाय, बछड़ों, भेड़-बकरी व अन्य जानवरों की हत्या पर रोक लगानी चाहिये।
संविधान का अनुच्छेद 48A कहता है कि राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेंगे और देशभर में जंगलों व वन्य जीवों की सुरक्षा के लिये काम करेंगे।