रक्षा बंधन त्योहार का होता है धार्मिक और सामाजिक महत्व, जानिए पूजन विधि और पर्व कथा।

मीडिया ग्रुप, 11 अगस्त, 2022

आज के आधुनिक युग में भले बहुत-सी चीजों में परिवर्तन आ गया हो लेकिन भाई-बहन के प्रेम का त्योहार रक्षा बंधन आज भी उसी स्वरूप में मनाया जाता है। भाई और बहन, दोनों ही बेसब्री से इस दिन का इंतजार करते हैं।

बाजारवाद के इस दौर में भाई का प्रयास रहता है कि वह बहन के लिए अच्छे से अच्छा उपहार लाये, कई बार बहनें भी भाई से रक्षा बंधन पर किसी खास चीज की फरमाइश कर देती हैं जिसे भाई खुशी-खुशी पूरा करता है।

पिछले दो साल कोरोना के दौर में निकले और पहली बार वीडियो कॉल के जरिये रक्षा बंधन का पर्व मनाया गया लेकिन अब सब कुछ सामान्य हो चुका है तो लोगों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह अभी से दिख रहा है।

रक्षा बंधन के धार्मिक और सामाजिक महत्व की बात करें तो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला पर्व रक्षा बंधन भाई बहन के प्रेम के प्रतीक का त्योहार है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांध कर और उसके माथे पर तिलक लगाकर उसकी विजय की कामना करती हैं।

इस दिन भाई प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति मैं अपनी बहन की रक्षा करूंगा। रक्षाबंधन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे तथा सोने या चांदी जैसी महंगी वस्तु तक की हो सकती है।

इस दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर लड़कियां और महिलाएं पूजा की थाली सजाती हैं। थाली में राखी के साथ रोली या हल्दी के अलावा चावल, दीपक और मिठाई भी होती है। लड़के और पुरुष तैयार होकर टीका करवाने के लिए पूजा या किसी उपयुक्त स्थान पर बैठते हैं। पहले अभीष्ट देवता की पूजा की जाती है।

इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके चावल को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है, दाहिनी कलाई पर राखी बांधी जाती है। इसके बाद भाई बहन को उपहार देता है। इस प्रकार रक्षाबंधन के अनुष्ठान के पूरा होने पर भोजन किया जाता है।

रक्षा बंधन पर्व की पौराणिक कथा

रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार, महाभारत में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। इस प्रकार उन दोनों के बीच भाई और बहन का बंधन विकसित हुआ था, तथा श्रीकृष्ण ने उनकी रक्षा करने का वचन दिया था।

इसी बंधन से ऋणी श्रीकृष्ण ने दुःशासन द्वारा चीर हरण के समय द्रौपदी की लाज बचाई थी। मध्य कालीन इतिहास में एक ऐसी घटना दिल्ली में मिलती है जिसमें चित्तौड़ की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के पास राखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूं ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया।

रक्षा बंधन पर्व की व्रत कथा

प्राचीन समय में एक बार देवताओं और दानवों में बारह वर्ष तक घोर संग्राम चला। इस संग्राम में राक्षसों की जीत हुई और देवता हार गए। दैत्य राज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया तथा अपने को भगवान घोषित कर दिया। दैत्यों के अत्याचारों से देवताओं के राजा इंद्र ने देवताओं के गुरु बृहस्पति से विचार−विमर्श किया और रक्षा विधान करने को कहा।

श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा का विधान संपन्न किया गया। सह धर्मिणी इन्द्राणी के साथ वृत्र संहारक इंद्र ने बृहस्पति की वाणी का अक्षरशः पालन किया। इन्द्राणि ने ब्राह्मण पुरोहितों द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर इंद्र के दायें हाथ में रक्षा सूत्र को बांध दिया। इसी सूत्र के बल पर इंद्र ने दानवों पर विजय प्राप्त की।

रक्षा बंधन जीवन को प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र त्योहार है। रक्षा का अर्थ है बचाव। मध्यकालीन भारत में जहां कुछ स्थानों पर, महिलाएं असुरक्षित महसूस करती थीं, वे पुरुषों को अपना भाई मानते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती थीं।

इस प्रकार राखी भाई और बहन के बीच प्यार के बंधन को मजबूत बनाती है, तथा इस भावनात्मक बंधन को पुनर्जीवित करती है। इस दिन ब्राह्मण अपने पवित्र जनेऊ बदलते हैं और एक बार पुनः धर्मग्रन्थों के अध्ययन के प्रति स्वयं को समर्पित करते हैं।