कद चाहे कितना भी बढ़ गया हो लेकिन मंत्री पद के लिए समीकरण में फिट होना भी जरूरी, पढ़िए मीडिया ग्रुप की खास रिपोर्ट

मीडिया ग्रुप, 16 मार्च, 2022

चुनाव जीतने के बाद मंत्री पद के लिए भाजपा के विधायक बेशक दिल्ली दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि उनका कद चाहे कितना भी बढ़ गया हो, पार्टी के समीकरणों में फिट होना भी जरूरी है। ऐसे उदाहरण हैं कि सोशल इंजीनियरिंग और क्षेत्रीय-जातीय समीकरणों की कसौटी परखने के बाद पहली बार में कुछ विधायकों की मंत्री बनने की चाहत पूरी हो गई।

मंत्रिमंडल का गठन करते समय जातीय समीकरण की कसौटी सबसे अहम है। यह टिकट वितरण तक सीमित नहीं। सरकार गठन पर मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले चेहरों को जातीय समीकरणों की कसौटी पर परखा जाता है। मिसाल के तौर पर 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बनी भाजपा सरकार में पांच ब्राह्मण, पांच ठाकुर और दो अनुसूचित जाति वर्ग से जुड़े विधायकों को स्थान दिया गया।

मंत्रिमंडल के गठन के लिए दूसरी अहम कसौटी क्षेत्रीय संतुलन साधने की है। सरकारों की यह कोशिश होती है कि राज्य के तकरीबन सभी क्षेत्रों को कैबिनेट में प्रतिनिधित्व मिल जाते। जिन जिलों में पार्टी को अधिक सीटें मिलती है, स्वाभाविक रूप से उनके खाते में मंत्री पद और अहम मंत्रालय जाने की संभावनाएं भी रहती हैं। 2017 में भाजपा को देहरादून जिले से 10 में से नौ सीटें मिलीं थीं।

सरकार में इस जिले को चार साल मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। बाद में मुख्यमंत्री का पद ऊधमसिंह नगर जिले के खाते में गया तो इस जिले से एक कैबिनेट मंत्री बनाया गया। गढ़वाल मंडल से भाजपा ने छह कैबिनेट मंत्री बनाए थे। जिसमें रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी को छोड़कर बाकी सभी जिलों को प्रतिनिधित्व मिला था। इसी तरह चार साल तक कुमाऊं मंडल बंशीधर भगत, अरविंद पांडेय, यशपाल आर्य, रेखा आर्य कैबिनेट में रहे। बाद में धामी भी कुमाऊं से सीएम बन गए। सबसे बड़े जिले ऊधमसिंह नगर से मुख्यमंत्री के साथ दो कैबिनेट मंत्री भी मंत्रिमंडल में रहे।

अनुभव, वरिष्ठता और निष्ठा भी कैबिनेट में जगह बनाने का एक प्रमुख आधार माना जाता है। यह आम धारणा है कि वरिष्ठ विधायक को पार्टी कैबिनेट में जगह देती है, लेकिन क्षेत्रीय, जातीय या सोशल इंजीनियर का फैक्टर आड़े आने पर वरिष्ठ विधायक की राह मुश्किल भी हो जाती है। वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर इसके उदाहरण रहे हैं।

कैबिनेट में महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व देने की परंपरा रही है। पिछली चार सरकारों में कम से कम एक महिला विधायक मंत्री रहीं। पूर्व कांग्रेस सरकार में डॉ. इंदिरा हृदयेश और अमृता रावत को भी मंत्री बनाया जा चुका है।

भाजपा के हलकों में यह चर्चा गर्म है कि केंद्रीय नेतृत्व कैबिनेट गठन के मामले में चौंका भी सकता है। गुजरात फार्मूले की भी चर्चाएं जोरों पर हैं। वर्तमान में कार्यवाहक सीएम धामी कैबिनेट में यशपाल आर्य और हरक सिंह रावत के त्यागपत्र के बाद दो पद पहले से खाली हैं। बाकी कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, बंशीधर भगत, सुबोध उनियाल, डॉ. धन सिंह रावत, अरविंद पांडेय, बिशन सिंह चुफाल, रेखा आर्य, गणेश जोशी निर्वाचित हो चुके हैं। इन सबकी कैबिनेट में मजबूत दावेदारी है। स्वामी यतीश्वरानंद हार चुके हैं।