मीडिया ग्रुप, 21 नवंबर, 2021
रिपोर्ट- मनीष ग्रोवर 9837676185
रुद्रपुर में मज़दूर सहयोग केंद्र का पहला सम्मेलन रविवार को संपन्न हुआ। सम्मेलन में मज़दूर विरोधी श्रम संहिताओं को वापस लेने, सरकारी सार्वजनिक संम्पत्तियो को बेचना बन्द करने, जनविरोधी कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा के अनुपालन सुनिश्चित कर किसान संकट का मुकम्मल समाधान करने, मज़दूर नेताओं, राजनीतीक कार्यकर्ताओं का दमन बन्द करने, फर्जी आरोपों में बंद मज़दूरों व नेताओं की रिहाई आदि का प्रस्ताव पारित किया।
मज़दूर सहयोग केंद्र, सन 2014 में अपनी स्थापना के समय से इस क्षेत्र के संघर्षरत ट्रेड यूनियनों और मज़दूर आंदोलनों के समर्थन में निरंतर सक्रीय रहा है। सम्मलेन के आंतरिक सत्र द्वारा केंद्र की नयी कार्यकारिणी का चयन हुआ जिसमें संरक्षक अमर सिंह, अध्यक्ष मुकुल, कार्यकारी अध्यक्ष दीपक सनवाल, उपाध्यक्ष दर्शन लाल, महासचिव धीरज जोशी, संयुक्त सचिव राजू सिंह, कोषाध्यक्ष महेंदर राणा, प्रचार सचिव हरेंदर सिंह, संगठन सचिव चन्द्रमोहन लखेड़ा व कार्यालय सचिव गोविन्द सिंह का निर्वाचन किया गया।
दुर्गा मंदिर परिसर, रविन्द्र नगर रुद्रपुर में आयोजित सम्मलेन के खुले सत्र में क्षेत्र के विभिन्न मज़दूर संगठन, ट्रेड यूनिय और सामाजिक कर्मी शरीक हुए। इनमें किसान नेता जन कवि बल्ली सिंह चीमा, जन संघर्ष मंच के सोमनाथ, सिद्धांत, IFTU सर्वहारा के सिद्धांत, मज़दूर पत्रिका से संतोष, देश विदेश पत्रिका से इंक़लाबी मज़दूर केंद्र के दिनेश, मारुति सुजुकी प्रोजिनल कमेटी के राम निवास, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के पी सी तिवारी, बीमा कर्मचारी संघ के मनोज गुप्ता, एमएसके के अमित, सीपीआई के राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता, अरविंद, गुरमुख, दर्शन लाल, के इन झा, रामजीत, दिनेश पन्त, अभिषेक त्यागी, धनबीर, नरेश सक्सेना, प्रशांत, जमन सिंह, हरेंद्र, निरजेश, क्रालोश के शक्ति सरकार, उत्तराखंड छात्र संगठन की भारती पांडे आदि शामिल थे।
किसान संघर्ष का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रसिद्द जनकवि और भारतीय किसान यूनियन (उग्रहाँ) के उत्तराखंड राज्य महासचिव बल्ली सिंह चीमा ने भी सम्मलेन को संबोधित किया। उन्होंने कहा की अगर बस ‘कुछ’ किसानों के आगे सरकार की झुकना पड़ा तो मज़दूर-किसान की एकता कई बड़े मुकाम हासिल कर सकती है।
सम्मलेन में भागीदारी के लिए उत्तराखंड प्रदेश के बहार से भी विभिन्न मज़दूर संगठनों और यूनियनों के प्रतिनिधि पहुंचे। इनमें मज़दूर सहयोग केंद्र, गुड़गांव, जन संघर्ष मंच हरियाणा, इंकलाबी मज़दूर केंद्र, मज़दूर पत्रिका, इफ्टू सर्वहारा, मारुती सुजुकी वर्कर्स यूनियन, प्रोविजनल कमेटी, मानेसर व डाइडो यूनियन, नीमराना के प्रतिनिधि शामिल हुए।
सम्मलेन ने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित करते हुए नए श्रम कानूनों को रद्द कराने के साझा संघर्ष को और तेज़ करने की प्रतिज्ञा ली। साथ ही उन्होंने काले कृषि कानून और यूएपीए जैसे दमनकारी काले कानूनों को रद्द करने की मांग उठाई। सम्मलेन ने सरकारी संपत्ति व उद्योगों के निजीकरण और मज़दूर, किसान व जानवदी संघर्षों पर दमन के खिलाफ़ आवाज़ बुलंद किया।
साथ ही, सम्मेलन ने उत्तराखंड के मज़दूरों को जाति-धर्म-क्षेत्र के आधार पर बांटने की कोशिशों के प्रति मज़दूरों को सतर्क और सचेत करने का कार्यभार लिया व राज्य में सिडकुल क्षेत्र में चल रहे तमाम मज़दूर संघर्षों को समर्थन जताया। हालांकि उत्तराखंड का सबसे बड़ा औद्योगिक छेत्र होने के बावजूद यह संगठित व कम जनसँख्या व एक जुटता नही दिखा पाए।