सात दिन में 60 हजार से ज्यादा आगजनी की घटनाएं, कई राज्यों के बड़े जंगल ज्यादा प्रभावित

मीडिया ग्रुप, 02 अप्रैल, 2022

अभी तो गर्मी का मौसम आया है और जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ गईं। भारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले एक हफ्ते में यानी 26 मार्च से एक अप्रैल के बीच देशभर के 29 राज्यों की जंगलों में 60 हजार से ज्यादा आगजनी के मामले सामने आए हैं।

बड़े जंगलों के आंकड़े देखें तो 24 राज्यों में पिछले छह से आठ दिनों में 1230 आग की घटनाएं सामने आईं। इनमें से 235 आग की घटनाओं पर काबू पाने की कोशिशें जारी हैं। सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 93, महाराष्ट्र में 47, छत्तीसगढ़ में 31, ओडिशा में 21 आगजनी के मामले एक्टिव हैं।

पिछले सात दिन में लार्जेस्ट फॉरेस्ट फायर (एलएफएफ) यानी बड़े जंगलों में आगजनी से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मिजोरम और बिहार सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। ये आंकड़े भारतीय वन सर्वेक्षण ने जारी किए हैं।

भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार पिछले सात दिनों में 29 राज्यों में 60 हजार से ज्यादा आगजनी की छोटी-बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। इनमें सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 17,709, छत्तीसगढ़ में 12,805, महाराष्ट्र में 8,920, ओडिशा में 7,130 और झारखंड में 4,684 आगजनी की घटनाएं हुई हैं। देश के कई राज्यों के जंगल में आग लगने से वन्य संपदा और वन्य जीवों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा है।

हाल ही में राजस्थान का सरिस्का 90 घंटों तक जलता रहा। इसके साथ ही पिछले कुछ दिनों में जम्मू कश्मीर और हिमाचल सहित देश के कई राज्यों में हजारों हेक्टेयर का जंगल तबाह हो गया।

पर्यावरण के विशेषज्ञ और रक्षा मंत्रालय में असिस्टेंट डायरेक्टर आदित्य पटेल बताते हैं, ‘मार्च में सामान्य से अधिक तापमान बढ़ने से आगजनी की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। जंगल में पेड़ों के सूखे पत्ते और टहनियां ईंधन का काम करते हैं। एक छोटी सी चिंगारी भी विकराल रूप ले लेती है। ऐसे में अगर हवा तेज चल रही हो तो एक जगह लगी आग पूरे जंगल को तबाह करने के लिए काफी है।’

आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक मार्च महीने में देश में 71 फीसदी कम बरसात हुई है। उत्तर पश्चिम भारत में 89 फीसदी और मध्य भारत में 87 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है। ऐसे में जंगलों का पूरी तरह सूखा होना भी आग लगने की आशंका को बढ़ा देता है।

पेड़ की टहनियों में घर्षण और सूरज की तेज किरणें जंगल में आग लगने का कारण बनने के लिए काफी हैं, लेकिन इंसानों की लापरवाही के कारण जंगलों में आगजनी की सबसे ज्यादा घटनाएं होती हैं। दरअसल, लोग जंगल में शिकार करने या उत्पाद निकालने के लिए आग लगाते हैं।

जैसे कि मध्यप्रदेश के जंगल में महुआ निकालने के लिए लोग झाड़ियों में आग लगाते हैं। कई बार जंगल में जाने वाले लोग बीड़ी और सिगरेट पीकर बिना बुझाए फेंक देते हैं, इससे आग लग जाती है।

आग बुझाने के लिए सबसे पहले ताप, ईंधन और ऑक्सीजन तीनों में से किसी एक को खत्म करने का प्रयास किया जाता है। पहाड़ों या घने जंगल में आग बुझाने के लिए कई बार आग का ही सहारा लिया जाता है। दरअसल, जिन जंगलों में पानी के स्त्रोत कम हो या फायर ब्रिगेड के पहुंचने में समस्या हो, वहां पारंपरिक तरीके से आग बुझाई जाती है।

इसके लिए जंगल के जिस हिस्से में आग लगती है, वहां खाई खोदकर एक और आग लगाई जाती है। जैसे ही आग की लपटें खाई में लगाई आग तक पहुंचती है तो दोनों मिलकर शांत हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आग को जलने के लिए ऑक्सीजन चाहिए। खाई में लगाई गई दूसरी आग से वहां सीमित मात्रा में मौजूद ऑक्सीजन खत्म हो जाता है और आग बुझ जाती है।

आधुनिक तरीके से जंगल में लगी आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर और एयर टैंकर की मदद ली जाती है। हेलीकॉप्टर जलस्त्रोत से पानी भरकर जंगल पर छिड़काव करता है। जिन क्षेत्रों में फायर की गाड़ियां नहीं पहुंचती, वहां स्मोक जंपर्स की मदद ली जाती है। स्मोक जंपर्स पैराशूट की मदद से पानी के बड़े बैगपैक और जरूरी सामान के साथ जंगल में प्रवेश करते हैं और आग बुझाते हैं।