मीडिया ग्रुप, 01 फरवरी, 2022
हमारे देश की ऐसी ही बेटियों में शुमार हैं अंतरिक्ष परी कल्पना चावला का नाम जिनकी कल्पना सिर्फ धरती तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने उससे भी कहीं ऊंचे अन्तरिक्ष में उड़ान भरने के ख्वाब देखे और उन्हें साकार भी किया।
कल्पना चावला पहली भारतीय महिला थीं जिन्होंने 19 नवंबर 1997 को अंतरिक्ष में अपनी प्रथम उड़ान एसटीएस 87 कोलंबिया शटल से भरी। उन्होंने अन्तरिक्ष में 372 घंटे बिताए और अरबों मील की यात्रा तय कर पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं पूरी कीं। बचपन से ही कल्पना चावला का सपना अन्तरिक्ष की ऊंचाइयां छूने का था, वे अक्सर कहा करती थीं कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनीं हूं।
कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल में बनारसी लाल चावला के घर 17 मार्च 1962 को हुआ था। अपने चार भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थीं। घर पर उन्हें प्यार से मोंटू कहकर पुकारा जाता था। कल्पना जब आठवीं क्लास में थीं तब उन्होंने अपने पिता से इंजीनियर बनने की इच्छा जाहिर कर दी थी।
कल्पना की शुरुआती पढ़ाई करनाल के टैगोर बाल निकेतन स्कूल में हुई। पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से 1982 में उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री पाई और इस विषय में मास्टर्स डिग्री के लिए वे अमेरिका गईं, यहां पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात जीन पिएर्रे हैरिसन से हुई। हैरिसन एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर और एविएशन लेखक थे। उन्हीं से कल्पना ने प्लेन उड़ाना सीखा। साल 1983 में कल्पना चावना ने हैरिसन से शादी की।
1984 में अमेरिकी टेक्सस यूनिवर्सिटी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री प्राप्त करने के पश्चात अगले पांच सालों तक कल्पना ने कैलीफोर्निया की कंपनी ओवरसेट मेथड्स में रहकर एयरोडायनमिक्स के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किए जो अनेक नामी जर्नल में प्रकाशित हुए।
फ्लुइड डायनमिक्स के क्षेत्र में अपने एक महत्वपूर्ण अनुसंधान को कर 1988 में वे नासा में शामिल हो गईं। कल्पना चावला की योग्यताओं और उनके हौसलों के चलते 1995 में उन्हें नासा में बतौर अंतरिक्ष यात्री शामिल किया गया।
नासा में कुछ समय के कड़े प्रशिक्षण और कोलंबिया अंतरिक्ष यान एसटीएस-87 मिशन में विशेषज्ञ की हैसियत से काम करने के पश्चात 19 नवंबर 1997 को वह दिन आया जब कल्पना चावला को अपने सपनों को साकार करती अंतरिक्ष की पहली उड़ान भरने का मौका मिला।
इस मिशन को कल्पना ने 5 दिसंबर 1997 को सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। अपने पहले मिशन में कल्पना ने पृथ्वी की 252 कक्षाओं में 6.5 अरब मील की यात्रा की और अंतरिक्ष में 376 घंटे और 34 मिनट बिताए। अंतरिक्ष में जाने वाली वे भारतीय मूल की पहली महिला थीं।
कल्पना के प्रथम सफल अंतरिक्ष मिशन के चलते नासा ने अगले पांच साल से भी कम समय में अपने जनवरी 2003 के कोलंबिया अंतरिक्ष यान एसटीएस-107 मिशन पर उन्हें न सिर्फ दूसरी बार अंतरिक्ष में भेजने का फैसला किया, बल्कि सात सदस्यीय मिशन टीम में उन्हें महत्वपूर्ण स्थान भी दिया। सोलह दिवसीय नासा के इस मिशन में कल्पना विशेषज्ञ के रूप में शामिल की गईं।
कल्पना ने अंतरिक्ष में अपनी दूसरी उड़ान 16 जनवरी, 2003 को स्पेस शटल कोलंबिया से शुरू की। 16 दिन का यह अंतरिक्ष मिशन पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था।
1 फरवरी, 2003 को इस अंतरिक्ष मिशन में अपनी कामयाबी के झंडे लहराता जब उनका यान धरती से करीब दो लाख फीट की ऊंचाई पर था और यान की रफ्तार करीब 20 हजार किलोमीटर प्रति घंटा थी। यह यान अगले 16 मिनट में धरती पर अमेरिका के टैक्सस शहर में उतरने वाला था और पूरी दुनिया बेसब्री से यान के धरती पर लौटने का इंतजार कर रही थी।
तभी दुर्भाग्यवश अचानक नासा का इस यान से संपर्क टूट गया और एक हृदयविदारक खबर ने सभी को दहला के रख दिया कि कोलंबिया स्पेस शटल दुर्घटनाग्रस्त हो गया है। इस हादसे में कल्पना चावला सहित सातों अंतरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई।
कल्पना चावला हमेशा कहा करती थी कि मैं अंतरिक्ष के लिए बनी हूँ, और 19 वर्ष पहले, 01 फरवरी के दिन, उसी अंतरिक्ष में विलीन हो गईं। कल्पना चावला नहीं रहीं, लेकिन उनकी कहानी, उनकी उड़ान, आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनी रहेगी।