यूपी में भाजपा को जाट किसानों की नाराजगी का होगा नुकसान, 01 साल 13 दिन लम्बे चले किसान आंदोलन को भूले नहीं किसान।
मीडिया ग्रुप, 30 जनवरी, 2022
तीन कृषि कानूनों की वापिसी की मांग को लेकर एक साल 13 दिन लम्बे चले आंदोलन पर किसानों की मांगों को लम्बे समय तक नजर अंदाज करना भाजपा को विधानसभा चुनाव में भारी पड रहा है। यूपी के जाट किसान और उनके नेता इस आंदोलन की वजह से भाजपा से ख़ासे नाराज दिख रहे है।
पश्चिमी यूपी की सियासत जातीय गणित बनाम ध्रुवीकरण की धुरी पर केंद्रित होती जा रही है। इसी नब्ज को भांपते हुए प्रमुख राजनीतिक दलों ने पश्चिमी यूपी में टिकट वितरण से लेकर वर्चुअल संवाद तक में जातीय गणित पर ही फोकस रखा है।
पश्चिम में जाट मतदाता सबसे ज्यादा मुखर हैं। यह कहा जाता है, ‘पश्चिम में जिसके जाट, उसके ठाठ।’ जाट मतदाता चुनावी माहौल बनाने में यहां अहम भूमिका निभाता रहा है। जाट मतदाताओं का असर तो करीब 100 सीटों पर है, लेकिन 30-40 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं।
यूं तो जाट हर चुनाव के पहले लामबंद होते रहे हैं, पर अबकी बार किसान आंदोलन के असर की वजह से उनकी लामबंदी और पुख्ता है। इस बार ध्रुवीकरण की राह में अड़चन बने जाट मतदाताओं को भाजपा और सपा-रालोद ने अपने पाले में करने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
भाजपा ने 17, सपा-रालोद गठबंधन ने 16 जाटों को मैदान में उतारा, कांग्रेस ने 6 और बसपा ने 4 को दिया टिकट। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, आगरा और अलीगढ़ मंडल के 26 जिलों में से कई में जाट मतदाताओं की संख्या 17 फीसदी तक है।
किसान आंदोलन से सियासत तक पश्चिम के जाटों की बड़ी भूमिका रही है। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन के वक्त राकेश टिकैत के आंसू निकले तो नजदीकी मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, अलीगढ़ और आगरा मंडल के किसानों ने ही रातों-रात कूच कर आंदोलन को ताकत दी थी। इनमें बड़ी संख्या जाटों की ही थी।
अखिलेश ने पश्चिमी यूपी में जयंत के साथ 7 दिसंबर को मेरठ के दबथुवा में रैली की। पश्चिमी यूपी में जयंत की बड़ी भूमिका का संदेश देने के मकसद से ही अखिलेश ने सपा के भी ज्यादातर प्रत्याशियों की सूची रालोद के ही आधिकारिक ट्विटर हैंडल से जारी कराई। छह प्रत्याशी ऐसे भी हैं जो सपा में थे, लेकिन रालोद के चुनाव निशान पर मैदान में हैं। इसे भांपते हुए भाजपा ने बड़ा दांव चला और पश्चिम की 17 सीटों पर जाट प्रत्याशी उतार दिए।
गृह मंत्री अमित शाह ने 26 जनवरी को दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. साहब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा के आवास पर हुई पंचायत में 250 से ज्यादा जाट नेताओं के साथ मुलाकात कर गिले शिकवे दूर करने की कोशिश की। हालांकि, जाट नेताओं ने लगे हाथ शाह को केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण के लिए 2017 और 2019 में भाजपा के किए वादे याद दिला दिए।
चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने और जाट नेताओं को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाने की मांग भी रख दी। प्रवेश वर्मा ने जयंत चौधरी को भाजपा के साथ आने का न्योता देकर जाटों को संदेश दिया कि उनकी पार्टी की लड़ाई रालोद से नहीं, सपा से है। प्रवेश ने मतदाताओं में कूटनीतिक ढंग से यह संदेश देने का प्रयास किया कि चुनाव बाद जयंत के लिए भाजपा की राह खुली हुई है। हालांकि, जयंत चौधरी और अखिलेश यादव ने इसके बाद मुजफ्फरनगर और मेरठ में संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा पर हमला किया। जयंत ने तो यहां तक कहा कि वह कोई चवन्नी नहीं हैं, जो यूं ही पलट जाएंगे।
जयंत ने यह भी कहा, भाजपा पहले उन 700 किसानों के परिवारों को न्योता दे, जिनके घर उजाड़ दिए। यानी यहां अभी जाटों का रुख भाजपा के प्रति नरम नहीं है। किसान आंदोलन से उपजी नाराजगी, गन्ना मूल्य में कम बढोतरी, भुगतान में विलंब के साथ ही तीन साल से सेना की भर्तियां नहीं होना भी यहां हर गांव में मुद्दा बन रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति धर्म से परे चौधरी चरण सिंह की एक बड़ी जगह है। चौधरी साहब यहां आज भी किसानों के दिलों में बसते हैं। चाहे पीएम मोदी हों या फिर सीएम योगी। मायावती हों या अखिलेश और जयंत…। इसीलिए सबका संबोधन चौधरी चरण सिंह का नाम लेकर ही होता है। किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को भी हर दल का नेता याद कर रहा है।