मीडिया ग्रुप, 05 अप्रैल, 2023
आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा कि फांसी की सजा सुनाने के बाद जज पेन की निब तोड़ देते हैं। मगर क्या आपको पता है कि जज ऐसा क्यों करते हैं? आज बात मृत्यु दंड की करेंगे जो कोई कानून नहीं बल्कि नियमों का एक अपवाद है।
मतलब सब नियम-कानून चूक जाने पर ही अपवाद स्वरूप मृत्युदंड दिया जाता है। ये कोई नियम नहीं है कि जज को फांसी की सजा देने के बाद कलम तोड़नी ही है। बल्कि ये एक परंपरा सरीखा बन गया है।
ये पूरी तरह से प्रतीकात्मक है। कहा जाता है कि मौत की सजा सुनाने के बाद पेन की निब तोड़ने की प्रथा अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुई थी।
जब भारत में ब्रिटिश राज था तो उस वक्त किसी को मौत की सजा सुनाने के बाद कलम तोड़ दी जाती थी।
एक बार हस्ताक्षर किए जाने के बाद, न्यायाधीशों के पास फैसले की समीक्षा करने या उसे रद्द करने की कोई शक्ति नहीं होती है। इसलिए निब को तोड़ दिया जाता है ताकि न्यायाधीश समीक्षा करने के बारे में न सोचे।
यह प्रथा इस मान्यता का प्रतीक है कि जिस कलम का उपयोग किसी व्यक्ति की जान लेने के लिए किया जाता है, उसका उपयोग कभी भी अन्य उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
एक अन्य तर्क में कहा गया है कि न्यायाधीश को अपराधी को फांसी देने के फैसले से नाखुश नहीं होना चाहिए और उसे कोई पछतावा नहीं है इसलिए वह इसे तोड़ देते है।
भारत में किन अपराधों की सजा मौत है
भारत में मृत्युदंड के प्रति न्यायिक रवैया अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता है। 2015 आयोग ने भारत में मृत्युदंड की समाप्ति की सिफारिश की, लेकिन कई लोगों ने इसका विरोध किया क्योंकि यह सबसे जघन्य अपराधों और दुर्लभतम अपराधों में सजा का अंतिम रूप है।
हत्या, बलात्कार, हत्या के साथ बलात्कार, आदि मामलों में मृत्युदंड का उपयोग तब किया जाता है जब कोई अपराध इतना गंभीर होता है कि उसमें पूरे समाज को आतंकित करने की क्षमता होती।