नैनीताल हाई कोर्ट को अन्यत्र शिफ्ट किया जाना “न्याय चला निर्धन से मिलने” को चरितार्थ करेगा-सुभाष छाबड़ा।

मीडिया ग्रुप, 21 अक्टूबर, 2022

लेखक- सुभाष छाबड़ा, पूर्व अध्यक्ष- जिला बार एसोसिएशन, ऊधमसिंह नगर।

रुद्रपुर। उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के दिन से ही उसका हाईकोर्ट बिना किसी गम्भीर विचार के नैनीताल में स्थापित कर दिया। तत्कालीन अटल सरकार ने इस मामले में प्रदेश के जनमानस को विश्वास में नहीं लिया।

नैनीताल के मौसम, महंगाई और आवागमन की कठिनाई को दृष्टिगत नहीं रखा गया, केवल उन चंद ठेकेदार वकीलों के आगे घुटने टेक दिए जो पहाड़ बनाम मैदान की लड़ाई को मुद्दा बना कर अपनी नेतागिरी चमकाने की फिराक में थे, इस आंदोलन की अगुवाई नैनीताल के वो वकील कर रहे थे जो वकालत के नाम पर कभी अदालत में झांकने भी नही गए लेकिन उन्होंने मामले को क्षेत्रवाद का संवेदनशील मुद्दा बना कर अपनी नेतागिरी चमका ली कुछ समय के लिए लेकिन उन्हें तथा जनता को कुछ हासिल नहीं हुआ।

मैदानी क्षेत्र के लोगों को नैनीताल में हाईकोर्ट से जो परेशानियां हैं, अगर उन्हें छोड़ भी दिया जाए तो सदूर गढ़वाल मंडल के पहाड़ी जिलों के लोगो के लिए तो और ज्यादा परेशानियाँ हैं। गढ़वाल के जिलों से नैनीताल की दूरी कम से कम तीन सौ से 500 किलोमीटर के बीच मे है। आम गरीब जनता किस तरह से मुकदमा लड़ रही है ये वही बेहतर जानती है। गढ़वाल से आवागमन के साधन सिर्फ सड़क मार्ग है रेल सिर्फ देहरादून ज़िले से आती है। काठगोदाम उसके बाद फिर सड़क मार्ग टैक्सी पकड़ो जिसका किराया गरीब के बूते में नहीं होता।

उत्तराखण्ड की जनता न्याय पाने के लिए पिछले 22 साल से अन्याय का शिकार हो रही है, अपने को जनता का प्रतिनिधि मानने वाले वकील और नेता जनता के वास्तविक शत्रु हैं चाहे वो जनता पहाड़ की हो या मैदानी इलाके की। धामी सरकार ने इस मामले में जो सक्रियता दिखाई है उसकी सराहना की जानी चाहिए विशेषकर मंत्री सतपाल महाराज की भी जिन्होंने जनता के दर्द को समझा और सबसे पहले आवाज़ उठाई। सरकार और उच्च न्यायालय को इन ठेकेदार नेताओ के दबाव में नहीं आना चाहिए और शीघ्र से शीघ्र उच्च न्यायालय को नैनीताल से हटाना चाहिए।

इस बारे में याद दिलाना ज़रूरी है कि रूद्रपुर में जब ज़िला न्यायालय निर्माण के लिए 51 एकड़ जमीन अधिग्रहित की गई थी तो मैंने सन 2001 में ज़िला बार एसोसिएशन उधमसिंह नगर का अध्यक्ष होने के नाते इतनी अधिक ज़मीन के अधिग्रहण का विरोध किया था जिस पर उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री अशोक देसाई तथा जिला जज श्री इरशाद हुसैन ने वकीलों को आश्वस्त किया था कि इतनी अधिक ज़मीन हाईकोर्ट के निर्माण के लिए अधिग्रहित की जा रही है जिस पर विरोध की आवाज़ खामोश हो गयी। वादा खिलाफी का इससे बड़ा नमूना और क्या होगा।

वर्तमान में इस मुद्दे को क्षेत्रवाद का मुद्दा बना कर नेतागिरी करने वाले लोग अपना चुनाव मैदानी समर्थन से ही जीते हैं लेकिन कभी नायक बने लोग आज खलनायक की भूमिका में हैं जिन्हें कदापि सहन नहीं किया जाएगा, पहाड़ मैदान के नाम पर नेतागिरी को सफल नहीं होने दिया जाएगा। लोगों को बांटने की साज़िश को हर हाल में नाकाम किया जायेगा। हाई कोर्ट नैनीताल को अन्यत्र सुगम क्षेत्र में स्थापित किए जाने से वादकारियो को आवागमन में काफी आसानी होगी। नैनीताल हाई कोर्ट को अन्यत्र शिफ्ट किया जाना “न्याय चला निर्धन से मिलने” को चरितार्थ करेगा।