मीडिया ग्रुप, 15 सितंबर, 2022
धोखाधड़ी के मामले में आईआईटी रुड़की के पूर्व सहायक प्रोफेसर को स्पेशल सीबीआई मजिस्ट्रेट की अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई है।
उन्होंने सामान्य जाति का होकर पिछड़ी जाति का फर्जी प्रमाणपत्र लगाकर आईआईटी में नौकरी पाई थी। यह काम एक नहीं बल्कि दो बार किया। कोर्ट ने दोषी पर दो धाराओं में 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
सीबीआई की अधिवक्ता ने बताया कि 29 सितंबर 2014 को आईआईटी रुड़की में असिस्टेंट प्रोफेसर रहे युवक के खिलाफ प्राथमिक जांच शुरू की गई थी। सीबीआई ने 29 फरवरी 2015 को युवक के खिलाफ धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज तैयार करने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था।
पता चला कि युवक क्षत्रिय परिवार से आते हैं। उन्होंने 15 फरवरी वर्ष 2000 को आईआईटी में पिछड़ी जाति के कोटे से लेक्चरर की नौकरी हासिल की थी। इसके लिए उन्होंने फर्जी दस्तावेज भी लगाया।
इसके बाद वर्ष 2003 में भी आईआईटी में जनरल कोटे में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती निकली। उन्होंने 27 अक्तूबर 2003 को इसमें भी नौकरी हासिल कर ली। इस प्रक्रिया में भी पिछड़ी जाति का फर्जी प्रमाणपत्र लगाया।
सीबीआई ने विवेचना के बाद 29 फरवरी 2016 को चार्जशीट दाखिल की। इस पर कोर्ट ने तीन मार्च 2016 को संज्ञान लिया और 17 फरवरी 2017 को आरोप तय किए गए।
युवक के खिलाफ ट्रायल चला, जिसमें सीबीआई की ओर से 17 गवाह पेश किए गए। बचाव पक्ष की ओर से एक भी गवाह पेश नहीं किया गया। इसके आधार पर स्पेशल सीबीआई मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें सजा सुना दी।