अशिक्षित नेताओं के हाथों की कठपुतली बनता देश का युवा।

मीडिया ग्रुप, 20 अगस्त, 2022

बादल गंगवार 79834 39874

बेरोजगार युवा नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर अपने भविष्य को दांव पर लगाने को मजबूर हैं। राजनीतिक दलों ने चुनावों में अपनी नैया पार लगाने के लिए युवाओं को कई पदों पर मनोनीत किए जाने का सिलसिला शुरू कर रखा है।

आपराधिक दर में इजाफा हो रहा है, तो कहीं न कहीं नेताओं की मिलीभगत का ही नतीजा है। बेरोजगारी से आहत युवा अक्सर नेताओं की चमचागिरी करके रातोंरात धनी बनने के लिए कई हथकंडे अपना रहे हैं। बढ़ती बेरोजगारी शिक्षित युवाओं को दीमक की तरह चाटती जा रही है।

जनसंख्या अनुसार रोजगार के अवसर जितने सृजित किए जाने की आवश्यकता है, उतने नहीं हो पा रहे हैं। नतीजतन युवा वर्ग बेरोजगारी की चक्की में पिसकर अपने लक्ष्यों से भटकता जा रहा है। युवा देश की रीढ़ की हड्डी की तरह होते हैं, जिन्हें राष्ट्र और समाज के पुनर्निर्माण के लिए अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।

मगर आजकल की शिक्षा अपने उद्देश्यों पर फिलहाल सही नहीं उतर पा रही है जिसकी वजह से युवा वर्ग आहत और निराश बनकर रह चुका है। ऐसी शिक्षा ग्रहण करने का क्या औचित्य जो युवाओं को नशे की गर्त में धकेलकर अपराधी बनने के लिए मजबूर कर रही हो।

शिक्षा के दो मूल उद्देश्य होते हैं जिसमें एक तो शिक्षित बनकर आजीविका से जुडऩा है, दूसरा राष्ट्र और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाना है। युवाओं को अब जरूरत अत्यधिक नैतिक शिक्षा ग्रहण करने की है जिसके चलते उनका संपूर्ण व्यक्तित्व विकास संभव हो पाए।

आज का युवा सिर्फ किताबों तक ही सीमित होकर दूसरी खेलकूद-सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले पा रहा है। भयावह बेरोजगारी की वजह से एक शिक्षित बेरोजगार सिर्फ पत्थरबाजी करने के लिए ही मजबूर नहीं हुआ, बल्कि नशों की लत में फंसकर अपने भविष्य से भी खिलवाड़ करता जा रहा है।

चुनावी समर में बेरोजगारी को खत्म करने का एजेंडा हर राजनीतिक दल के मैनिफेस्टो में शामिल होता है। चुनावों के बाद कोई भी राजनीतिक दल अब तक युवाओं से किए गए वायदों पर खरा नहीं उतर पाया है।

युवाओं के लिए रोजगार के अवसर सृजित किए जाने की बजाय सरकारें उन्हें चंद रुपए के भत्ते देने के नाम पर उनका मजाक उड़ाती रही हैं। भत्ते के नाम पर मिलने वाली यह खैरात युवाओं के मनोबल को भी गिरा सकती है, भारत के लोग रोजगार कमाने के लिए विदेशों में कड़ी मेहनत करके अपने परिवारों का पेट पाल रहे हैं।

भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी अधिकांश जनता गांवों में बसती है। एक समय था जब लोग कृषि को ही अपनी आजीविका का साधन मानते थे। आज हालात बदल गए हैं। अब लोग बेरोजगारी से तंग आकर अपनी जमीनें तक बेचकर विदेशों में डेरा लगा रहे हैं।

सरकार को बेरोजगार युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए माकूल प्रयास करने की जरूरत है। बेरोजगार युवा नेताओं के हाथ की कठपुतली बनकर अपने भविष्य को दांव पर लगाने को मजबूर हैं।

राजनीतिक दलों ने चुनावों में अपनी नैया पार लगाने के लिए युवाओं को कई पदों पर मनोनीत किए जाने का सिलसिला शुरू कर रखा हुआ है। इस पर गौर करना होगा। सरकार अब बेरोजगारी मिटाने पर ध्यान दे।