मीडिया ग्रुप, 20 मार्च, 2022
कांग्रेस बीते कई वर्षों से देश पर अपनी सियासी पकड़ खोती जा रही है, भाजपा की बेशुमार दौलत की ताकत और धर्म की राजनीति के आगे कांग्रेस कहीं टिकती नजर नहीं आ रही है। जनता में जहां एक ओर कांग्रेस में गांधी परिवार के नेतृत्व पर सवाल खड़े किए जा रहे है तो कांग्रेस को गांधी परिवार का नेतृत्व हटने से कांग्रेस में एक बार फूट की संभावना का डर सताने लगता है।
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद निश्चित ही कांग्रेस पार्टी के भविष्य के लिए एक ऐसा प्रश्नचिन्ह स्थापित हो गया है, जिसका जवाब फिलहाल न तो कांग्रेस नेतृत्व के पास है और न ही अब इसका जवाब आसान ही रह गया है।
कांग्रेस में उथल-पुथल, विद्रोह और विभाजन की कहानी बहुत पुरानी है। यह सिलसिला आजादी के तुरंत बाद 1950 के दशक में ही शुरू हो गया था। उसके बाद से इस पार्टी में 70 बार से भी ज्यादा विभाजन हो चुका है। देश में तमाम अन्य दलों का उभार उसी की कीमत पर हुआ है।
कांग्रेस का संकट हाल के वर्षों में और गहरा गया है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पार्टी नेतृत्व ने वक्त के हिसाब से पर्याप्त कदम उठाने में हीलाहवाली का परिचय दिया। तमाम लोगों के मन में संदेह गहरा रहा है कि जब पार्टी के प्रतिभाशाली नेता ही इस डूबते जहाज से किनारा कर रहे हैं तब कांग्रेस का अस्तित्व लंबे समय तक कायम नहीं रहेगा।
कांग्रेस भले ही अपनी परेशानियों को लिए बाहरी कारणों पर कितना ही ठीकरा क्यों न फोड़ती रहे, लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि पार्टी आलाकमान का कुप्रबंधन भी उसके गर्त में जाने का कारण है।
कांग्रेस में ऐसी स्थितियों के पीछे क्या कारण हैं? क्यों कांग्रेस निरंतर अपने अस्तित्व को खोती जा रही है? इसके पीछे के कारण तलाश किए जाएं तो कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गाहे बगाहे कांग्रेस के अंदर ही अंदर जिस प्रकार के स्वर मुखरित हो रहे हैं, उसका यही सही जवाब है, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस इन स्वरों से इत्तेफाक नहीं रखती।
पिछले दो बार के लोकसभा चुनावों के बाद कांग्रेस की जो राजनीतिक स्थिति बनी, वह कांग्रेस के लिए एक स्पष्ट चेतावनी भी थी, इस बारे में कई कांग्रेस के नेताओं ने अपने नेतृत्व को आत्ममंथन के लिए आगाह भी किया था, लेकिन कांग्रेस ने इन बातों को सुनने की बजाय अपने कानों को लगभग बंद ही कर लिया। हालांकि नेतृत्व परिवर्तन के लिए कवायद भी प्रारंभ हुई थी, लेकिन परिणाम जो निकला, वह ढाक के तीन पात जैसा ही था।
कांग्रेस में गांधी परिवार से बाहर का अध्यक्ष बनाए जाने की बात हवा में ही उड़ गई। कहने के बाद भी अगर गांधी परिवार के बाहर का अध्यक्ष नहीं बना तो इसके पीछे केवल यही कारण था कि इस परिवार के अलावा कांग्रेस का कोई भी नेता ऐसा नहीं है जो पार्टी को एक रख सके। ऐसी स्थिति में कांग्रेस एक बार फिर बड़ी फूट का डर कहीं न कहीं नेतृत्व परिवर्तन बहाना सामने रखा जाता है।
कांग्रेस में सुधार की गुंजाइश की संभावना में मंथन करने वाला समूह एक बार फिर राष्ट्रीय नेतृत्व पर ठीकरा फोड़ने की कवायद करता हुआ दिखाई दे रहा है। कांग्रेस को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बड़े मंथन के साथ बड़े बदलाव की भी आवश्यकता है, अन्यथा देश की आजादी की लड़ाई लड़ने वाली कांग्रेस का भविष्य क्या होगा यह समय ही तय करेगा।