उत्तराखंड में लगातार धधक रहे जंगल, वन संपदा के साथ वन्य जीवों के लिए भी खतरा बन गई आग

उत्तराखंड में इस साल जंगल अधिक धधक रहे हैं। तेज गर्मी और ऊपर से जंगलों में आग से वन्य जीवों की जान पर बन आई है। उनके सामने पानी और भोजन का संकट पैदा होने के साथ ही कुछ क्षेत्रों में शिकार का भी खतरा बना है। खासकर राजाजी टाइगर रिजर्व और नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के आबादी क्षेत्र से लगे जंगलों में शिकारी इन दिनों घात लगाए रहते हैं।

प्रमुख वन संरक्षक वन्य जीव समीर सिन्हा बताते हैं कि गर्मी में जंगली जानवर आबादी की ओर आ सकते हैं,जिसे देखते हुए सभी डीएफओ को सतर्कता बरतने के निर्देश जारी किए गए हैं। तेज गर्मी में वन्य जीवों के पीने के पानी की दिक्कत न हो, इसके लिए प्रदेश के पूरे जंगलों में पानी के गड्ढे बनाए गए हैं।

कुछ क्षेत्रों में इसकी मरम्मत की जा रही है तो कुछ अन्य क्षेत्रों में नए गड्ढे बनाए जा रहे हैं। सभी प्रभागीय वनाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि पानी के गड्ढे जंगल में आबादी क्षेत्र से अलग बनाए जाएं, ताकि पानी की तलाश में वन्य जीव आबादी की तरफ न आ सकें। कहा, सभी डीएफओ को वन्य जीवों की सुरक्षा को लेकर आवश्यक निर्देश दिए गए हैं।

पर्यावरणविद पद्मश्री कल्याण सिंह रावत बताते हैं कि यह समय वन्य जीवों के प्रजनन काल का होता है। जंगल में आग से जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंच रहा है। खेतों में खर पतवार फूंकने की वजह से कई बार जंगल में आग लग जाती है। इसके अलावा कुछ लोग जानबूझकर भी जंगलों में आग लगाते हैं। पहाड़ के जंगलों में आग से जैव विविधता प्रभावित होने के साथ ही क्षेत्र में श्वास के रोगी बढ़ रहे हैं।

प्रदेश में पिछले 24 घंटे में पांच जगह जंगलों में आग भड़की है। चकराता वन प्रभाग के वन पंचायत क्षेत्र में एक, लैंसडौन वन प्रभाग में दो और पिथौरागढ़ वन प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में दो जगह आग लगी है,। जिससे तीन हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है।

भारतीय वन्य जीव संस्थान की ओर से पिछले साल नरेंद्रनगर वन प्रभाग समेत कुछ अन्य वन प्रभागों में आग से प्रभावित क्षेत्रों का सर्वे किया गया था, जिससे पता चला कि कम आग वाले क्षेत्रों में कीट विविधता अधिक है, जबकि सबसे अधिक आग प्रभावित क्षेत्रों में कीट विविधता सबसे कम है।

– डाॅ. वीपी उनियाल, पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक भारतीय वन्यजीव संस्थान