भारत अब 6G तकनीक की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इंडिया मोबाइल कांग्रेस (IMC) 2025 में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत का 6G रिसर्च और डेवलपमेंट आने वाले वर्षों में दुनिया की नेटवर्क टेक्नोलॉजी को दिशा देगा।
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के चीफ 5G स्ट्रेटेजिस्ट अशुतोष दत्ता ने कहा कि आने वाले समय में हर जगह कनेक्टिविटी सबसे बड़ी जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि हर किसी के पास टावर या वाई-फाई की सुविधा नहीं होती, इसलिए सैटेलाइट नेटवर्क भविष्य में बड़ा रोल निभाएंगे।
सैटेलाइट और ग्राउंड नेटवर्क का मेल
अशुतोष दत्ता ने बताया कि आने वाले नेटवर्क में स्थलीय (Terrestrial) और गैर-स्थलीय (Non-Terrestrial) नेटवर्क को एक साथ जोड़ना जरूरी होगा, ताकि कनेक्शन कभी न टूटे। उन्होंने कहा कि ऑपरेटर, रिसर्चर्स और टेक्नोलॉजी कंपनियों को मिलकर टेस्टबेड्स और सिमुलेशन मॉडल तैयार करने चाहिए, जिससे 6G के नए उपयोग विकसित किए जा सकें।
उन्होंने सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर भी चेताया और कहा कि जब हम वाई-फाई, सैटेलाइट या अन्य नेटवर्क्स के बीच स्विच करते हैं, तो डेटा सिक्योरिटी सबसे अहम हो जाती है।
भारत के पास तकनीकी क्षमता और मजबूत इरादे
दत्ता ने बताया कि भारत के पास तकनीकी विशेषज्ञता और सरकारी समर्थन दोनों हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें अब इंडस्ट्री, सरकार और अकादमिक संस्थानों के बीच मिलकर काम करना होगा ताकि आने वाले 6G युग के लिए नए कौशल विकसित किए जा सकें।
Li-Fi तकनीक से बदल सकता है खेल
‘फादर ऑफ Li-Fi’ कहे जाने वाले प्रोफेसर हेराल्ड हास ने कहा कि भारत की कनेक्टिविटी क्रांति में Li-Fi तकनीक बड़ा बदलाव ला सकती है। उन्होंने बताया कि जहां फाइबर बिछाना मुश्किल है, वहां Li-Fi से बिना केबल के फास्ट इंटरनेट दिया जा सकता है।
जापान भी बढ़ाना चाहता है साझेदारी
जापान के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (NICT) के अधिकारी इवाओ होसाको ने कहा कि भारत अब संचार और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में वैश्विक शक्ति बन चुका है। उन्होंने कहा कि हम भारत के साथ नई टेक्नोलॉजी और सर्विस डेवलपमेंट में सहयोग बढ़ाना चाहते हैं। पहले से कई भारतीय विशेषज्ञ हमारे साथ काम कर रहे हैं, और अब इसे सरकार-से-सरकार स्तर तक ले जाने का समय है।
