मीडिया ग्रुप, 31 अक्टूबर, 2025
लखनऊ : लूट व एससी/एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा दर्ज कराना एक महिला को भारी पड़ गया है। कोर्ट ने मामले में दोषी करार दी गयी महिला ममता को एससी/एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है।
लूट व एससी/एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा दर्ज कराना एक महिला को भारी पड़ गया है। कोर्ट ने मामले में दोषी करार दी गयी महिला ममता को एससी/एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही अदालत ने निर्णय की एक प्रति जिलाधिकारी को इस आशय से भेजी है कि यदि सरकार ने एससी-एसटी होने के नाते महिला को कोई राहत राशि दी गई है तो उसको तत्काल वापस लिया जाना सुनिश्चित करे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार ममता ने विपक्षी गुट के नेता अर्जुन, विनोद कुमार व केशन के विरुद्ध थाना माल मे लूट व एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया था। विवेचना के दौरान जानकारी मिली कि ममता ने विष्णु पाल के कहने पर ये मुकदमा लिखवाया था।
इससे पहले विष्णु पाल व अन्य के विरुद्ध विपक्षी गुट के नेता अर्जुन सिंह गुट की महिला कार्यकर्ता आरती ने दहेज प्रथा, मारपीट व जान से मारने की धमकी देने का मुकदमा दर्ज कराया था। इसी की रंजिश के चलते दोषी महिला ने पेशबंदी कर यह फर्जी मुकदमा दर्ज कराया। विवेचना के दौरान घटना से जुड़े स्वतंत्र गवाहों ने भी बताया कि घटना न केवल फर्जी है, अपितु केवल रंजिशवश दर्ज कराई गयी है।
कोर्ट ने एससी/एसटी अत्याचार निवारण नियमावली 1995 की व्याख्या करते हुए जिलाधिकारी लखनऊ को निर्देश दिया कि भविष्य में किसी भी मामले में केवल एफआईआर दर्ज होने पर राहत राशि न दी जाए। राहत की संपूर्ण राशि केवल तब दी जाए जब आरोप पत्र दाखिल हो जाए और मामला प्रथम दृष्टया सिद्ध हो। अगर एफआईआर दर्ज होने के स्तर पर ही राहत राशि दी जाती रही, तो फर्जी मुकदमों की संख्या बढ़ती जाएगी। निर्दोष लोग झूठे मामलों में फंसते रहेंगे। अब समय आ गया है कि इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाए।
