10 रूपये वाला स्टांप 12 रूपये में बेचने वाले स्टांप विक्रेता के खिलाफ 20 साल चला मुकदमा, सुप्रीम कोर्ट से हुआ बरी।

स्टांप विक्रेता भी लोक सेवक की श्रेणी में, उनके खिलाफ चल सकता है भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत मुकदमा- सुप्रीम कोर्ट

मीडिया ग्रुप, 03 मई, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि ‘स्टांप विक्रेता भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत ‘लोक सेवक की परिभाषा के दायरे में आते हैं। शीर्ष अदालत कहा है कि ‘चूंकि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत स्टांप बिक्रेता भी लोक सेवक है, इसलिए उनके खिलाफ भी इस कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है। हालांकि शीर्ष अदालत ने विशेष अदालत द्वारा मौजूदा मामले में 10 रुपये के स्टांप पेपर पर 2 रुपये अतिरिक्त शुल्क लेने के आरोप में दोषी ठहराकर स्टांप पेपर बिक्रेता को दी गई सजा को रद्द कर दिया है।

उच्च न्यायालय ने भी विशेष अदालत द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में स्टांप पेपर बिक्रेता को दोषी ठहराने और सजा देने के फैसले को बहाल रखा था। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने ‘भले ही अपीलकर्ता अमन भाटिया को राहत देते हुए, विशेष अदालत से मिली सजा को रद्द कर दिया है, लेकिन उनकी उन दलीलों को सिरे से ठुकरा दिया जिसमें कहा गया था कि स्टांप पेपर बिक्रेता के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

पीठ ने अपीलकर्ता के इस दलील को खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा है कि ‘यदि कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक कर्तव्य के निष्पादन के लिए फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक लेता है, तो वह भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत ‘लोक सेवक माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने अपने पूर्व के एक फैसले का हवाला देते हुए यह टिप्पणी की है।

शीर्ष अदालत ने स्टांप अधिनियम और संबंधित कानून के विभिन्न प्रावधानों का जिक्र करते हुए अपने फैसले में कहा है कि जिस रियायती मूल्य पर विक्रेता सरकार से स्टाम्प पेपर खरीदते हैं, वह पारिश्रमिक के रूप में कार्य करता है। पीठ ने कहा कि स्टांप पेपर बेचना, एक सार्वजनिक यानी सरकारी कर्तव्य है।

शीर्ष अदालत ने कहा है कि देश भर के स्टाम्प विक्रेता, एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक कर्तव्य निभाते हैं और बदले में सरकार से पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं, इसलिए इस बात में कोई संदेह नहीं कि वे भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 2(सी)(आई) के तहत लोक सेवक हैं।

यह था मामला दरअसल, वर्ष 2003 में भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने 10 रुपये का स्टांप पेपर 12 रुपये में बेचने यानी 2 रुपये अतिरिक्त शुल्क लेने के मामले में स्टांप पेपर बिक्रेता अमन भाटिया के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 7 और 13(1)(डी) के साथ धारा 13(2) के तहत मुकदमा दर्ज किया था।

इस मामले में विशेष अदालत ने 2009 में भाटिया को दोषी ठहराते हुए, सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने भी 2013 में विशेष अदालत के फैसले के बहाल रखते हुए भाटिया की अपील को खारिज कर दिया था। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। अपील में सजा को चुनौती देने के साथ ही, अपीलकर्ता ने कहा कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता क्योंकि वह एक निजी व्यक्ति है, सरकारी कर्मचारी नहीं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस तर्क को खारिज कर दिया। लेकिन तथ्यों व साक्ष्यों के अभाव में अपीलकर्ता को राहत देते हुए विशेष अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा दोषी ठहराने के फैसले को रद्द कर दिया।